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१५ अगस्त -२०१३ : एक और कैलेंडर !

अभी कल ही लगा था कि
देश आजाद हो गया है !

भले ही दो टुकड़े 
होने के बाद 
और "ग़दर" या 
'शरणार्थियों' की
बदत्तर हालातों से परे,
देश ने भी महसूसा था 
आज़ादी पन को !

धीरे-धीरे 
बीत गये छियासठ बरस
चमकती आँखों की 
शून्यता में वो सरे 
सपने , 
लोकतंत्र की राजनीति की 
भेंट चढ़ गये !

अब राजनेता 
या 
'कार्पोरेट' ही मनाते हैं 
आज़ादी का उल्लास!

और 
किसान का बच्चा 
अब भी खड़ा है'
 सर झुकाए 
यस सर या 
हाँ, मालिक !
एक सिवा 
उसे नहीं है 
आज़ादी बिसलेरी के बचे
हुए पानी को 
भी पीने की !

४७ से १३ तक 
कुछ बदला है तो 
बस एक 
"कैलेंडर"

टिप्पणियाँ

  1. कैलेण्डर की यह तारीख बदलाव की अनुगूंज बने...
    बाकी स्थिति तो वैसी ही है जैसा आपने लिखा है!

    जवाब देंहटाएं
  2. ४७ से १३ तक
    कुछ बदला है तो
    बस एक
    "कैलेंडर"...Bahut sarthk aur badiya kavita ....!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति ,,
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.

    जवाब देंहटाएं
  4. बदला कुछ नहीं ,केवल गोरे के बदले काले लोग कुर्सी पर बैठ गए है
    latest os मैं हूँ भारतवासी।
    latest post नेता उवाच !!!

    जवाब देंहटाएं
  5. एक अच्छी बात है कि परिवर्तन का दौर चल रहा है और वो भी बेहतरी की दिशा में. किसी भी तंत्र को परिपक्व होने में समय तो लगता ही है. सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  6. सच कहा है बदला है तो बस केलेंडर या नेताओं और अमीरों की तिजोरी ...
    जनता का तंत्र तो कहीं खो गया है ...

    जवाब देंहटाएं
  7. तंत्र बदल गया ....शासक तो शासक ही है
    सुंदर ..प्रभावी रचना ..वाह आह के साथ

    जवाब देंहटाएं
  8. बिल्कुल ! यही तो हुआ है , या हो रहा है ! हर साल एक नया कैलेंडर आ जाता है , एक नई उम्मीद लिए ! और हर बार बस वही आज़ादी को ढूंढते हैं ! बहुत ही सटीक शब्द

    जवाब देंहटाएं

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