शरीर के
धारण करते ही
पैदा हो जाती है
भूख,
जो मरने तक
बनी रहती है ।
सारा जीवन
इसी भूख के इर्द-गिर्द
घूमता रहता है
काल के पहिये की मानिन्द।
भूख कभी नहीं मरती,
मार देती है
संवेदनाएं
वेदनाएं
और सीमाएं ।
हम भूख को
जिन्दा रखने के लिये
मारते रहते हैं
जीवन को ।
भूख और जीवन
दोनों ही नहीं
मरते कभी ।
या
भूख के मरने से पहले
मर जाता है जीवन,
कि जीवन के मरते ही
मर जाती है भूख।
धारण करते ही
पैदा हो जाती है
भूख,
जो मरने तक
बनी रहती है ।
सारा जीवन
इसी भूख के इर्द-गिर्द
घूमता रहता है
काल के पहिये की मानिन्द।
भूख कभी नहीं मरती,
मार देती है
संवेदनाएं
वेदनाएं
और सीमाएं ।
हम भूख को
जिन्दा रखने के लिये
मारते रहते हैं
जीवन को ।
भूख और जीवन
दोनों ही नहीं
मरते कभी ।
या
भूख के मरने से पहले
मर जाता है जीवन,
कि जीवन के मरते ही
मर जाती है भूख।